Why Krishna carry peacock feather : भगवान श्रीकृष्ण का सौंदर्य और श्रृंगार के बारे में हमने बहुत सुना हैं। उनका श्रृंगार बहुत अद्भुत और निराला होता है। उनके श्रृंगार के रूप में मोर पंख अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो उनके अद्वितीय और अनूठे श्रृंगार को प्रकट करता है। भगवान श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु के अवतार माना जाता है, और इस पंख का महत्व उनके अवतार के रूप में है जो उन्हें एक अद्वितीय और विशेषता से युक्त बनाता है।
पंख का संबंध भगवान श्रीकृष्ण के श्रृंगार और रासलीला के साथ है। मोर पंख के अलावा, उनके अन्य आभूषण और श्रृंगार सामग्री भी उनकी आदर्श प्रतिमा में समाहित हैं। पंख का उपयोग उनके सौंदर्य को बढ़ाता है और उनकी लीलाओं को और भी रोमांचक बनाता है।
भगवान श्रीकृष्ण का मोर पंख धारण करना अनेक कारणों से महत्वपूर्ण है। पहले तो, मोर पंख आकर्षण का प्रतीक है, जो भगवान के आकर्षण को दर्शाता है। यह उनकी प्रतिमा को और भी अद्भुत और सुंदर बनाता है। दूसरे, मोर पंख भगवान के श्रृंगार के प्रति उनकी समर्पण को दर्शाता है। यह भक्तों को उनके भगवान के प्रति भक्ति और प्रेम की भावना को और भी गहरा करता है।
तीसरे, मोर पंख भगवान के साथ की आपसी संबंध की एक प्रतीक है। मोर को हिंदू पौराणिक कथाओं में श्रेष्ठता का प्रतीक माना जाता है, जिसका उपयोग भगवान के साथ के विचार में किया जाता है। चौथे, मोर पंख की धारणा संसार को उनके दिव्यता और अद्वितीयता की ओर ध्यान दिलाती है। यह उनके प्राकृतिक सौंदर्य को और भी प्रभावशाली बनाता है और भक्तों को उनकी दिव्यता का अनुभव करने में मदद करता है।

इस प्रकार, भगवान श्रीकृष्ण के मोर पंख का धारण करना उनके अद्वितीय सौंदर्य और श्रृंगार के महत्व को दर्शाता है। यह एक प्रेम और भक्ति का संदेश भी लेकर आता है, जो उनके भक्तों को उनके भगवान के प्रति समर्पित और प्रेमभाव से जोड़ता है।
भगवान श्रीकृष्ण के मोर पंख के द्वारा, हमें यह भी सिखाया जाता है कि वे प्रेम और संबंधों के लिए किसी भी रूप में उपलब्ध हैं। मोर पंख के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण अपने भक्तों के प्रति अपना प्रेम और सामर्थ्य दिखाते हैं, जो कि उनकी अद्वितीयता को और भी विशेष बनाता है। इसके अलावा, इस पंख का धारण करना उनके भक्तों को यह याद दिलाता है कि भगवान की शक्ति और प्रेम के साथ, सभी संभव है।
भगवान श्रीकृष्ण के मोर पंख का धारण करना भगवान के भक्तों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत है। इसके माध्यम से हम उनके दिव्य स्वरूप और अमूल्य शिक्षाओं का अनुसरण कर सकते हैं और अपने जीवन में प्रेम और सामर्थ्य को अपना सकते हैं भगवान श्रीकृष्ण के मोर पंख का धारण करना एक संगीत से सम्बंधित अद्वितीय संदेश है जो हमें प्रेम, समर्पण और आत्मसमर्पण की महत्वपूर्ण शिक्षाएं देता है। इसे समझने के लिए हमें भगवान के प्रति निष्ठा और प्रेम में बने रहना चाहिए, जिससे हम अपने जीवन को उत्तम और प्रेरणास्त्रोत बना सकें। इस भावना के साथ, हमें अपने दिनचर्या में भगवान के साथ संवाद में रहना चाहिए, जिससे हम उनके अद्वितीय सौंदर्य और प्रेम का अनुभव कर सकें।
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ToggleWhy Krishna carry peacock feather : 3 Reasons
कुंडली में था यह दोष
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म और उनके जीवन में एक विशेष कथा और महत्वपूर्ण समय के रूप में माना जाता है। वे भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर रोहिणी नक्षत्र में अवतरित हुए थे, जिससे उनका जन्मोत्सव एक महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सव है।
भगवान श्रीकृष्ण की कुंडली में कालसर्प दोष का उल्लेख किया जाता है, जो कि धार्मिक मान्यताओं में महत्वपूर्ण है। कालसर्प दोष का मतलब होता है कि जन्मकुंडली में सर्प ग्रहों के आकर्षण और प्रभाव से एक व्यक्ति को कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है।
वेदिक ज्योतिष और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, मोर और सांप के बीच एक ऐतिहासिक विरोध रहा है। दोनों के बीच युद्ध का वर्णन धार्मिक कथाओं में मिलता है। इसलिए, मोर को कालसर्प दोष दूर करने का संकेत माना जाता है। इसी कारण भगवान श्रीकृष्ण को मोर पंख धारण करने की परंपरा मिलती है। इससे उनकी कुंडली में विद्वेष और कठिनाईयों का निवारण होता है, और उनका जीवन सुखमय और समृद्धिशाली होता है।
भगवान श्रीकृष्ण के मोर पंख धारण करने की प्रथा और महत्व अत्यंत धार्मिक और सामाजिक है। यह धारणा उनके भक्तों को उनकी कृपा और आशीर्वाद का अनुभव करने में मदद करती है, और उन्हें अपने जीवन में सफलता और खुशियों की प्राप्ति में सहायक होती है।
धारण करने का यह भी है कारण
राधा रानी और भगवान कृष्ण का प्रेम एक अत्यंत रोमांचक और प्रेमपूर्ण कथा है, जो हमारे साहित्य और साधनों में अद्वितीय रूप से प्रस्तुत है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, राधा रानी को भगवान कृष्ण की प्रेमिका के रूप में जाना जाता है। उनके प्रेम के अनेक कथाएं और उनके साथीत्व का अद्वितीय अनुभव हमें उनके प्रेम की गहराई को समझने में मदद करते हैं।
एक ऐसी कथा में, जब भगवान कृष्ण बांसुरी बजा रहे थे, तो राधा रानी उनके साथ नृत्य कर रही थीं। उनके नृत्य के समय मोर भी उनके साथ उत्साह से नाचने लगे। इस खास पल में, एक मोर का पंख नीचे गिर गया। भगवान कृष्ण ने उस पंख को उठाकर अपने माथे पर सजाकर रख लिया।
इस घटना के बाद, श्रीकृष्ण ने इस मोर पंख को राधा के प्रेम का प्रतीक माना। इसका मतलब यह है कि उनका प्रेम राधा के प्रति एक साथी और सहानुभूति की भावना से भरा हुआ था। राधा रानी के प्रति इस प्रेम और सहानुभूति को दिखाते हुए, भगवान कृष्ण ने अपने माथे पर मोर पंख को सजाने का निर्णय लिया।

इस कथा से हमें यह संदेश मिलता है कि प्रेम और सामर्थ्य के रूप में, राधा रानी और भगवान कृष्ण का साथीत्व अत्यंत विशेष और सानिध्यपूर्ण है। उनका प्रेम और समर्थ्य एक दूसरे के साथ एक अत्यंत सात्विक और आनंदमय रिश्ता बनाते हैं, जो हमें आत्मा के साथ मिलता है। इस कथा के माध्यम से हमें यह भी शिक्षा मिलती है कि प्रेम में समर्थता, सहानुभूति, और साथीत्व की महत्वपूर्णता है।
मिलता है ये संदेश
भगवान श्री कृष्ण द्वारा मोर पंख धारण करने के पीछे एक खास संदेश भी छिपा हुआ है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, श्री कृष्ण के बड़े भाई यानी बलराम जी शेषनाग के अवतार थे। वहीं, मोर और नाग एक दूसरे के दुश्मन होते हैं, लेकिन कृष्ण जी के माथे पर लगा मोरपंख यह संदेश देता है कि वह शत्रु को भी विशेष स्थान दिया जाना चाहिए।

मोर पंख से मिलने वाला एक संदेश यह भी है कि मोर पंख में कई रंग पाए जाते हैं, जो इस बात का संदेश देते हैं कि जीवन में भी मोरपंख की भांति ही सुख और दुख के रंग होते हैं। क्योंकि जीवन में हर रंग अर्थात हर अवस्था का होना जरूरी है।
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