हिंदू धर्म में 12 ज्योतिर्लिंगों का विशेष महत्व माना गया है। हर एक ज्योतिर्लिंग की पीछे कई पौराणिक कथाएं हैं जिननका विशेष महत्व माना जाता है। सभी 12 में से ज्योतिर्लिंग Mahakaleshwar Temple का विशेष स्थान है । यह ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित है। उज्जैन के भगवान महाकालेश्वर की ख्याति दूर-दूर तक है। कहते हैं यहां आने वालों की झोली कभी खाली नहीं जाती। आइए जानते हैं 12 ज्योतिर्लिंग के इस शिव धाम में कैसे हुई महाकाल की स्थापना ।
महाकालेश्वर मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। Mahakaleshwar Temple Indian culture and religious heritage का एक important symbol है। यह मंदिर उज्जैन, मध्यप्रदेश में है और भगवान शिव को dedicated है। Mahakaleshwar Temple Indian culture के Religious elements and historical traditions का symbol है और श्रद्धालुओं की भक्ति का केंद्र है।
इस मंदिर का निर्माण महाभारत के समय हुआ था और various religious and cultural practices में यह मंदिर समृद्ध हो गया। महाकालेश्वर मंदिर को स्वयंभू और अत्यन्त पुण्यदायी माना जाता है। यहाँ पर मान्यता है कि महाकालेश्वर मंदिर के दर्शन करने से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मंदिर का huge and grand form, इसे एक अद्वितीय स्थल बनाता है। यहाँ की शिवलिंग की पूजा और उसकी भक्ति highest spiritual experience को प्राप्त करने का माध्यम है। महाकालेश्वर मंदिर के various historical events के साथ जुड़े अनेक mythology हैं। इसके अतिरिक्त, यह मंदिर economic, social, and cultural development के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र भी है। महाकालेश्वर मंदिर का दर्शन करना एक unique spiritual experience है जो श्रद्धालुओं को शिव के प्रति उनकी भक्ति का अनुभव कराता है।
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ToggleMahakaleshwar Temple का इतिहास
1107 ई. में उज्जैन में यवनों का शासन प्रारंभ हुआ। उस समय यवनों के शासनकाल में उज्जैन में स्थापित हिन्दू धर्म की ancient traditions नष्ट हो गईं। यह शासनकाल उज्जैन के ancient religious sites के लिए कठिन समय था। 1690 ई. में मराठों ने मालवा क्षेत्र में आक्रमण किया और November 1728 को मराठा शासकों ने मालवा क्षेत्र में अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया। इसके बाद, उज्जैन का नया युग प्रारंभ हुआ, और 1731 से 1809 तक यह नगरी मालवा की राजधानी बनी रही।
मराठों के शासनकाल में उज्जैन में दो महत्वपूर्ण घटनाएँ घटीं। पहली घटना, महाकालेश्वर मंदिर का reconstruction और ज्योतिर्लिंग की reinstatement हुई। इसके साथ ही, सिंहस्थ पर्व का स्थापना भी की गई, जो एक महत्वपूर्ण समारोह था। 1690 में मराठा सेनापति नरायण भास्कर ने महाकालेश्वर मंदिर का reconstruction करवाया। उसने मंदिर को aesthetic form दिया और उसके परिसर को विस्तारित किया। इस प्रकार, मंदिर का reconstruction important हो गया, जिसने उज्जैन के religious and cultural heritage को पुनः सजीव किया।
दूसरी महत्वपूर्ण घटना 1734 में हुई, जब महाराजा भोज ने महाकालेश्वर मंदिर का expansion करवाया। उन्होंने मंदिर को और भी महान बनाया और उसकी magnificence को और बढ़ाया। इस प्रकार, मराठा साम्राज्य के शासनकाल में उज्जैन नगर Important religious and cultural centers बना और religious updates के साथ-साथ नगर की social and economic situation को भी मजबूत किया।

Mahakaleshwar Temple और Mughals
1235 में इल्तुत्मिश के द्वारा महाकालेश्वर मंदिर का invasion हुआ था, लेकिन इसके बाद भी उज्जैन में राज करने वाले शासकों ने इस मंदिर के reconstruction and beautification में विशेष ध्यान दिया। उन्होंने मंदिर की renovation process को प्रोत्साहित किया और उसकी structure को सुधारा। इस religious place को हर वर्ष सिंहस्थ के पूर्व सुसज्जित किया जाता है, जिससे यहाँ की religious place बनी रहती है। इस unique place का aesthetic and spiritual significance हर वर्ष लाखों श्रद्धालुओं को attract करता है और उन्हें religious and spiritual experiences प्रदान करता है।
Mahakaleshwar Temple Details
महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन के प्रमुख religious places में से एक है। यहाँ के परिसर में एक परकोटा है जिसमें मंदिर स्थित है। मंदिर में पहुँचने के लिए एक सीढ़ीदार रास्ता है जो गर्भगृह तक जाता है। इसके ठीक ऊपर ओंकारेश्वर शिवलिंग का स्थान है। मंदिर का क्षेत्रफल 10.77 x 10.77 sq.m है और height 28.71 meters है। महाशिवरात्रि और श्रावण मास के हर सोमवार को मंदिर में अपार भीड़ होती है।
मंदिर के पास एक छोटा-सा जलस्रोत है जिसे कोटितीर्थ कहा जाता है। इसका महत्वपूर्ण संबंध महाकालेश्वर मंदिर की गाथा से है, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इल्तुत्मिश ने मंदिर को तुड़वाया तो शिवलिंग को इसी कोटितीर्थ में स्थापित किया गया था।
1968 के सिंहस्थ महापर्व के पूर्व मुख्य द्वार का विस्तार कर सुसज्जित किया गया था। इसके अलावा, Birla Industries Group के द्वारा 1980 के सिंहस्थ के पूर्व एक विशाल सभा मंडप का निर्माण किया गया था। मंदिर की management के लिए एक administrative committee का गठन किया गया है, जो इसकी व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाती है। हाल ही में, मंदिर में दान के लिए internet facility भी चालू की गई है। इस प्रकार, महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन का एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल है जो लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है और उन्हें spiritual experience प्रदान करता है।
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महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, अवंती नामक नगरी में एक ज्ञानी ब्राह्मण वेद प्रिय नाम से जाने जाते थे। वे बुद्धिमान थे और भगवान शिव के भक्त थे। प्रतिदिन वे पार्थिव शिवलिंग बनाकर शिव की पूजा किया करते थे। उनके साथ ही उसी नगर में दूषण राक्षस भी रहता था। उसे ब्रह्मा जी के वरदान के कारण दिव्य शक्ति मिली थी।
दूषण, अवंती नगर के ब्राह्मणों पर हमला करने लगा। वह उन्हें परेशान करने और उन्हें धार्मिक कार्यों से हटाने की कोशिश करने लगा। ब्राह्मणों ने उसके धमकियों पर ध्यान नहीं दिया और वे शिव शंकर की शरण में आए। उन्होंने भगवान शिव से अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना की। भगवान शिव ने ब्राह्मणों की प्रार्थना सुनी और उनकी सहायता के लिए उन्हें वरदान दिया। उन्होंने दूषण को प्रतिबंधित कर दिया और अवंती नगर को सुरक्षित किया। इसके बाद से अवंती नगर में शांति और समृद्धि बनी रही। यह कथा दिखाती है कि धार्मिकता और भक्ति की शक्ति हमें संग्रहीत और सुरक्षित रख सकती है, चाहे सामने कितनी भी कठिनाई क्यों न हो। भगवान की शरण में आकर हम सभी अपनी समस्याओं का समाधान पा सकते हैं।
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भगवान शिव की एक हुंकार से हुआ राक्षस का अंत
भगवान शिव ने नगरवासियों को बचाने के लिए दूषण को चेतावनी दी, लेकिन दूषण ने ध्यान में नहीं लिया। उसने नगर पर हमला किया, जिससे भगवान शिव का क्रोध बढ़ गया। उन्होंने जमीन फाड़ कर अपने भयानक रूप में प्रकट होकर दूषण को एक हुंकार से ही समाप्त कर दिया। इसके बाद, नगरवासी ब्राह्मणों ने भगवान शिव से इस स्थान पर ही विराजित होने की प्रार्थना की। यह कहा जाता है कि इन प्रार्थनाओं के परिणामस्वरूप, भगवान शिव ने उस स्थान पर विराजमान होने का निर्णय किया, और वहां महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रतिष्ठित हो गए।
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