Vaidyanath Dham: जाने कैसे रावण के एक गलती के वजह से बाबा वैद्यनाथ धाम स्थापित हुआ?1 min read

Vaidyanath Dham
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Vaidyanath Dham: हिन्दू धर्म में भगवान शिव का बहुत ही विशेष स्थान है। इन्हे देवो के देव महादेव कहा जाता है। सभी देवी देवता इनका बहुत ही सम्मान करते है। जो भी भक्त इनकी पूजा सच्चे मन से करता है भगवान शिव उससे खुश होकर उसकी सारी इच्छा पूरी कर देते है।

महादेव से जुड़े सभी 12 ज्योतिर्लिंगों Somnath Temple, Mahakaleshwar Temple, Rameshwaram Temple, Kedarnath Temple, Omkareshwar Temple, Mallikarjuna Temple, Kashi Vishvanath, Trimbakeshwar, Nageshvara Temple, Grishneshwar Temple और Bhimashankar में से Vaidyanath Dham बिलकुल अलग है। इस मंदिर का निर्माण महादेव के सबसे बड़े भक्त यानि लंका के राजा रावण की एक गलती के वजह से हुआ था। आज के इस blog के through हम ये जानेंगे की रावण ने आखिर ऐसी कौन ही गलती की थी जिस वजह से इस मंदिर का निर्माण हुआ।

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Baba Vaidyanath Dham

यह मंदिर झारखण्ड के देवघर में है। महादेव को बाबा वैद्यनाथ के नाम से भी जाना जाता है इसलिए इस मंदिर को बाबा Vaidyanath Dham भी बोला जाता है। हिन्दुओ के लिए यह मंदिर बहुत ही important है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में अगर भक्त सच्चे मन से आकर पूजा करे तो उसकी सारी मनोकामना पूरी हो जाती है जिस वजह से इस मंदिर में स्थित शिवलिंग को कामना लिंग भी बोलते है।

ऐसे इस मंदिर में हर दिन भक्तो की भीड़ रहती है but सोमवार की पूजा का बहुत ही विशेष महत्त्व है। हर सोमवार को सभी शिव भक्त यहाँ आकर महादेव की सच्चे मन से पूजा करते है।

देवो के देव महादेव को सावन का महीना बहुत ही प्रिय है इसलिए हर साल सावन के महीने में देश दुनिया के कोने कोने से भगवान शिव के करोडो भक्त इस मंदिर में पूजा करने के लिए आते है। इस मंदिर में पूजा करने के लिए भागलपुर के सुल्तानगंज में उत्तरवाहिनी गंगा का जल use किया जाता है। महादेव के भक्त सुल्तानगंज से जल भरकर बोल बम का नारा लगाते हुए पैदल अपनी यात्रा को पूरी करते है और देवघर पहुँच कर महादेव को जल अर्पित करते है।

रावण के गलती के वजह से बना Vaidyanath Dham

लंका के राजा रावण को महादेव का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है। वह प्रतिदिन महादेव की पूजा करने के लिए लंका से कैलाश पर्वत जाता था। इसी क्रम में एक बार रावण ने सोचा क्यों न महादेव को खुश करके लंका ही लाया जाये। इसके लिए रावण ने महादेव को कठिन तपस्या शुरू की।

जब काफी समय बीत जाने के बाद भी महादेव ने रावण को दर्शन नहीं दिए तो रावण ने महादेव को खुश करने के लिए एक एक करके अपने 9 सिर काटकर शिवलिंग पर चढ़ाना शुरू किया। रावण जैसे ही अपना 10th सिर काटने वाला था तभी महादेव ने रावण को वरदान मांगने के लिए बोला।

तब रावण ने महादेव से कहा हे भगवन! मैं प्रतिदिन आपकी पूजा करने के लिए लंका से यहाँ कैलाश पर्वत आता हूँ। मेरी आपने एक विनती है कि आप एक शिवलिंग के रूप में मेरे साथ लंका चले। तो भगवान शिव ने कहा रावण तुम मेरे सबसे बड़े भक्त हो और आज पहली बार तुमने मुझसे अपनी इच्छा प्रकट की है। मैं तुम्हारे साथ लंका जरूर चलूँगा।

महादेव ने रावण को शिवलिंग चुनने को कहा जिसे वो अपने साथ लंका ले जाना चाहता था। रावण ने अनजाने में उस शिवलिंग को चुन लिया जिसे माता पार्वती ने खुद अपने हाथों से बनाया था। रावण ने उस शिवलिंग को लंका ले जाने की इच्छा जाहिर की तो माता पार्वती गुस्सा हो गयी क्योंकि वो शिवलिंग माता पार्वती को बहुत ही ज्यादा प्रिय था। तब महादेव ने माता पार्वती को समझाया कि भक्त को उसकी इच्छा का फल तो देना ही पड़ेगा।

रावण की वो गलती

महादेव ने वो शिवलिंग रावण को लंका ले जाने की permission दे दी but एक condition भी बताया। अगर रावण ने उस शिवलिंग को लंका से पहले कही भीं धरती पर रख दिया तो वो शिवलिंग उसी जगह स्थापित हो जायेगा। रावण अपनी ताकत के घमंड में आकर इस शर्त पर ध्यान नहीं दिया और वो शिवलिंग को लेकर जाने लगा। रास्ते में रावण को लघुशंका लगी तो तो वो शिवलिंग को नीचे रखने ही वाला था की उसे महादेव की चेतावनी याद आई। रावण इधर उधर देखने लगा तभी उसे एक लड़का दिखाई दिया।

वो लड़का कोई और नहीं खुद इस सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु थे जिन्होंने बैजू नाम के लड़के का रूप धारण किया था। रावण ने उस लड़के को शिवलिंग देकर बोला की इसे ज़मीन पर मत रखना मैं तुरंत ही लघुशंका से आता हूँ। काफी देर हो जाने के बाद भी रावण नहीं आया तो उस लड़के ने शिवलिंग को वही ज़मीन पर रखकर चला गया। रावण ने वापस आते ही जैसे उस शिवलिंग को ज़मीन पर देखा तो रावण के होश उड़ गए। बैजू के वजह से ही महादेव का शिवलिंग रावण के लंका नहीं जा सका इसलिए इस मंदिर को बैजनाथ धाम भी बोलते है।

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रावण ने अपनी पूरी ताकत लगाकर भी उस शिवलिंग को दुबारा उठा नहीं सका। तब गुस्से में आकर रावण ने अपने अंघूठे से उस शिवलिंग को ज़मीन में दबा दिया और वापस लंका लौट गया। रावण के वापस जाने के बाद सभी देवतागण वहां आये और महादेव की उस शिवलिंग की विधिवत पूजा अर्चना की।

विश्वकर्मा जी ने वहां एक भव्य मंदिर का निर्माण किया। क्योंकि इस मंदिर के निर्माण रावण के वजह से हुआ था इस मंदिर का नाम रावण के नाम पर रखा गया, इसलिए इस मंदिर को रावणेश्वर भी बोला जाता है। रावणेश्वर का मतलब होता है रावण का ईश्वर। महादेव के इस मंदिर के पास ही माता पार्वती का भी एक मंदिर है जो एक धागे से जुड़ा हुआ है।

मान्यताएँ

देवघर के इस मंदिर परिसर में कई सारे देवी देवताओ के मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ महादेव सभी देवी देवताओ के साथ हर दिन शाम के समय आते है।

ऐसा भी माना जाता है कि इस मंदिर में पूजा करने के बाद जब तक बासुकीनाथ की पूजा नहीं की जाती तब तक महादेव की पूजा अधूरी रहती है। भगवान शिव के गले में जो नाग है उसका नाम बासुकी है। उसी के नाम पर बासुकीनाथ मंदिर का नाम पड़ा है।

भगवान शिव के जितने भी मंदिर है सभी में त्रिशूल की पूजा की जाती है लेकिन इस मंदिर में पंचशूल की पूजा की जाती है। हर साल महाशिवरात्रि के दो दिन पहले इस पंचशील की पूजा की जाती है। पंचशूल में माता पार्वती, महादेव, लक्ष्मी नारायण और अन्य सभी देवी देवताओ के मंदिर शामिल है।

सती से जुड़ा है Vaidyanath Dham

देवी सती के पिता दक्ष द्वारा महादेव का अपनाम करने से गुस्से में आकर देवी सती ने यज्ञ कुण्ड में कूद कर अपना शरीर त्याग दिया और जब महादेव उनके शरीर को लेकर तांडव कर रहे थे, तो भगवान विष्णु के चक्र द्वारा देवी सती के शरीर के कई टुकड़े किये गए थे उनके अलग अलग शरीर के अंग अलग अलग स्थानों पर गिरे थे।

ऐसा माना जाता है की यहाँ देवी सती का ह्रदय गिरा था, जिस वजह से यहाँ माता पार्वती का मंदिर बनवाया गया था।महादेव के मंदिर में पूजा करने के बाद माता पार्वती के मंदिर में भी पूजा करना जरुरी है तभी पूजा पूरी होगी और उसका फल मिलेगा।

रावण तालाब

रावण जब शिवलिंग को लेकर लंका जा रहा था तो रास्ते में उसे प्यास लगी और उसने पानी पिया। उसके पानी पीते ही जल देव उसके पेट में चले गए जिस वजह से रावण को लघुशंका लगी। रावण बैजू को शिवलिंग देकर लघुशंका के लिए चला गया। और बहुत समय तक वापस नहीं आया। ऐसा माना जाता हैं कि जल देव के वजह से रावण ने इतनी मात्रा में लघुशंका कि, की वहां एक तालाब बन गया। यह तालाब मंदिर के सामने ही है, लेकिन इस तालाब में कोई भी स्नान नहीं करता है। इस तालाब का निर्माण रावण के लघुशंका के वजह से हुआ था इसलिए इसे रावण तालाब बोला जाता है।

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Conclusion

भगवान शिव को सभी देवताओ में बहुत ही खास माना जाता है। इन्हे खुश करना भक्तो के लिए काफी आसान है। इनके सबसे बड़े भक्त रावण के एक गलती के वजह से इस मंदिर का निर्माण हुआ। रावण के नाम पर ही इस मंदिर का नाम रावणेश्वर मंदिर है। अगर आपको ये blog पसंद आया हो तो comment के through हमें जरूर बताएं।

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