Tirupati Balaji में बालों को क्यों किया जाता है दान?2 min read

Tirupati Balaji
Spread the love

Tirupati Balaji: भारत का धार्मिक इतिहास काफी पुराना है। यहाँ हर धर्म के लोग एक साथ रहते है। भारत में कई सारे प्राचीन मंदिर है। हर मंदिर की अपनी mystery है। कई मंदिर तो ऐसे है जो कई centuries से है। हर मंदिर से जुड़ी उसकी अपनी कहानी है।

कई सारे मंदिर तो ऐसे भी जय जिनकी mystery आज तक सुलझ नहीं पाई है। वही कुछ मंदिर ऐसे ही भी जिनसे जुडी कई सारी मान्यतायें है।आज के इस blog में हम इन्ही मंदिरो में से एक Tirupati Balaji के बारे में जानेंगे। ऐसी कौन सी मान्यता है जिस वजह से भक्त Tirupati Balaji में अपने बाल दान करते है।

Tirupati Balaji

Tirupati Balaji का मंदिर Andhra Pradesh के Tirupati District में Tirumala Hills पर स्थित है। यह मंदिर भगवान विष्णु के एक रूप Venkateswara को dedicate है जिस वजह से इस मंदिर को Sri Venkateswara Swami Temple भी बोलते है। ऐसा माना जाता है कि Venkateswara Swami इंसानो को कलयुग के कष्टों से बचाने के लिए धरती पर आये है।

Join our telegram channel  https://t.me/sandeshpatr

इसलिए इस जगह को कलयुग का बैकुंठ भी कहा जाता है और यहां के देवता को कलयुग प्रत्यक्ष दैवम कहा जाता है। Sri Venkateswara Swami Temple को Tirumala Temple, Tirupati Temple and Tirupati Balaji Temple जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है। Venkateswara Swami को Balaji, Govinda and Srinivas जैसे दूसरे नामो से भी जाना जाता है। इस मंदिर में Venkateswara Swami अपनी पत्नी पद्मावती के साथ निवास करते है।

यह मंदिर पंचक्षेत्रो के उन मंदिरो में से एक है जहाँ महर्षि भृगु की बेटी भार्गवी का जन्म हुआ था। भार्गवी माता महालक्ष्मी का एक रूप है। पंचक्षेत्रो के अन्य मंदिरो में Sarangapani Temple, Kumbakonam, Oppiliappan Temple, Nachiyar Koil और Sundararaja Perumal Temple, Salem है।

Tirumala Temple जिस Tirumala Hills पर है वो Seshachalam Hills Range का एक हिस्सा है। Seshachalam Hills पर 7 peaks है जिसे Adishesha के 7 सर कहा जाता है। यह मंदिर 7th Peak Venkatadri पर स्थित है। यह मंदिर Swami Pushkarini के southern banks पर है। इस मंदिर को Temple of Seven Hills भी कहा जाता है।

History of Tirupati Balaji

ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का इतिहास 9th Century के starting से होता है। उस समय काँच‍ीपुरम के शासक वंश पल्लवों ने इस स्थान पर उस समय शासन किया था लेकिन 15th Century के विजयनगर वंश के शासन के बाद भी इस मंदिर की popularity limited रही। 15th Century के बाद इस मंदिर की popularity फैलनी शुरू हो गई। 1843 1933 तक British Rule के under इस मंदिर का management हातीरामजी मठ के महंत ने संभाला।

1933 में इस मंदिर का management Madras Government ने अपने हाथ में ले लिया और एक independent management committee Tirumala-Tirupati का गठन किया जिसे इस मंदिर का management सौप दिया गया। Andhra Pradesh के एक अलग राज्य बनने के बाद इस committee को फिर से बनाया गया और एक administration Officer को Andhra Pradesh Government के represent के रूप में नियुक्त किया गया।

मंदिर से जुडी मान्यतायें

इस मंदिर से जुड़ी 2 कहानियां सुनने को मिलती है जो भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी से जुड़ी हुई है। पहली मान्यता ये है कि धरती की शुरुआत में यहाँ सिर्फ पानी ही पानी था। इसकी वजह ये बताई जाती है कि पवन देव ने अग्नि देव को रोकने के लिए बेहतर तेज उड़ान भरी थी जिस वजह से बादल फट गए और धरती पर पानी ही पानी हो गया।

Follow us on Instagram  https://www.instagram.com/sandesh.patr/

तब धरती पर जीवन को फिर से लाने के लिए वराह अवतार लिया। भगवान विष्णु के इस अवतार ने पानी में डूब चुके धरती को अपने सिंग के ऊपर रखा। इसके बाद ब्रह्म देव के योगबल के कारण लोग फिर से धरती पर रहने लगे और भगवान विष्णु के वराह अवतार ने 4 हाथो वाले भूदेवी के साथ कृदचला पर्वत पर निवास किया और लोगो को ध्यान योग और कर्मयोग जैसे वरदान देने का फैसला किया।

दूसरी मान्यता भगवान विष्णु के अवतार श्रीनिवास और माता लक्ष्मी के रूप भार्गवी से जुडी है। ऐसा माना जाता है कि एक बार सभी ऋषि इस बात को लेकर परेशान थे कि उनके यज्ञ का फल त्रिदेवो में से किसे मिलेगा। सभी ऋषि जब इस बात से परेशान थे तब नारदजी ने भृगु ऋषि को इस समस्या का समाधान ढूंढने के लिए कहा। भृगु ऋषि इस समस्या को लेकर त्रिदेवो के पास गए लेकिन ब्रह्म देव के अलावा महादेव और विष्णु ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया।

इस बात से भृगु ऋषि अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने भगवान विष्णु की छाती पर अपने पैर से मारा। इसके बावजूद भी भगवान विष्णु से भृगु के पैर ये सोचकर दबाये कि शायद उनके पैरो में दर्द हो रहा होगा। इसके बाद भृगु ने सभी ऋषियों से से कहा कि उनके यज्ञ का सभी फल भगवान विष्णु को ही मिलेगा।

भृगु के पैर मारने के कारण माता लक्ष्मी अत्यंत क्रोधित हो गई और उन्होंने भगवान विष्णु से भृगु को दण्डित करने के लिए कहा। लेकिन भगवान विष्णु ने ऐसा करने से मना कर दिया। ये सुनकर माता लक्ष्मी गुस्से में बैकुंठ छोडकर धरती पर आ गई और कोल्हापुर में तपस्या करने लगी।

माता लक्ष्मी के बैकुंठ छोड़े जाने से भगवान विष्णु अत्यंत दुखी थे और धरती पर आकर माता लक्ष्मी को ढूंढने लगे। काफी जगग ढूंढने के बाद भी माता लक्ष्मी नहीं मिली। तब भगवान विष्णु ने वेंकटाद्रि पर्वत पर चीटियों के साथ रहने लगे। यह देखकर ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु की मदद करने का फैसला किया और उन्होंने गाय और बछड़े का रूप धारण करके माता लक्ष्मी के पास चले गए।

Follow us on twitter https://twitter.com/sandeshpatr

उस गाय को माता लक्ष्मी ने चोल राजा को दान में दे दिया और राजा ने उस गाय को चरवाहे को सौप दिया। लेकिन वो गाय सिर्फ भगवान विष्णु के अवतार श्रीनिवास को ही दूध देती थी। जिस वजह से चरवाहे ने उसे मारने की कोशिश की। तब श्रीनिवास ने गुस्से में आकर चोल राजा को राक्षस रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया। तब राजा ने श्रीनिवास से प्रार्थना की तो श्रीनिवास ने राजा से कहा की अगर वो अपनी बेटी पद्मावती की शादी उनसे करवा देगा तो इस श्राप से बच सकता है।

जब ये बात पद्मावत को पता चली तो उन्होंने श्रीनिवास को पहचान लिया और उनसे लिपट गई। इसके बाद इनदोनो ने पत्थर का रूप धारण कर लिया और हमेशा के लिए उसी स्थान पर विराजमान हो गए। Venkateswara Swami प्रतिदिन धोती और साड़ी पहनाई जाती है।

दान में बाल देने के पीछे क्या वजह है ?

जब श्रीनिवास और पद्मावती का विवाह हो रहा था तो उस समय एक प्रथा थी कि विवाह से पहले स्त्री के परिवार को एक तरह का शुल्क देना होता था। श्रीनिवास ये शुल्क देने में असमर्थ थे इसलिए उन्होंने कुबेर देव से ऋण लिया था। और ये वादा किया था कि वो कलयुग के ख़त्म होने से पहले इस ऋण की चूका देंगे।

उन्होंने माता लक्ष्मी की तरफ से ये वादा किया कि जो भी उनका ये ऋण चुकाने में मदद करेगा माता लक्ष्मी उसे दस गुणा धन देगी। इस मंदिर में भक्त अपने बाल को दान में देकर श्रीनिवास के ऋण को चुकाने में उनकी मदद करते है।

मान्यताए

मंदिर प्रबंधन का मानना है की Venkateswara Swami की प्रतिमा पर जो बाल है वो असली है। ये बाल हमेशा मुलायम रहते है और साथ ही साथ आपस में कभी भी उलझते नहीं है। जब हम मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश करेंगे तो ऐसा लगेगा की प्रतिमा गर्भ गृह के बीच में है लेकिन जब हम मंदिर से बाहर आएंगे तो ऐसा लगता है कि प्रतिमा दाहिनी तरफ है।

इस मंदिर में भगवान की मूर्ति से पसीना भी निकलता है जिस वजह से इस मंदिर का तापमान हमेशा कम रखा रखा जाता है। Tirupati Balaji में use होने वाली साडी चीज़े मंदिर से 23 km दूर एक गाँव से आती है जहाँ बाहरी लोगो का आना मना है। मंदिर में एक दीपक है बिना किसी तेल या घी के जलता आ रहा है। किसी को ये नहीं पता की उस दीपक को किसने सबसे पहले जलाया था।

हर गुरुवार भगवान को चंदन का लेप लगाया जाता है जिसे धोने पर उस दिन से लेकर आज तक har friday को उनकी ठुड्डी पर चंदन लगाया लगाया जाता है ताकि उनका घाव ठीक हो सके। अगर हम Venkateswara Swami की मूर्ति पर कान लगाकर ध्यान से सुनेंगे तो हमें समुंद्र की लहरे सुनाई देगी। के ह्रदय पर माता लक्ष्मी की आकृति दिखाई देती है। इस मंदिर के मुख्य दरवाजे के right side एक छड़ी रखी हुई है। ऐसी मान्यता है कि इसी छड़ी से बचपन में उनकी पिटाई की गई थी जिस वजह से उनकी ठुड्डी पर घाव हो गया था।

उस दिन से लेकर आज तक har friday को उनकी ठुड्डी पर चंदन लगाया लगाया जाता है ताकि उनका घाव ठीक हो सके। अगर हम Venkateswara Swami की मूर्ति पर कान लगाकर ध्यान से सुनेंगे तो हमें समुद्र की लहरे सुनाई देगी। Venkateswara Swami की मूर्ति हर समय पसीने से भीगी हुईं रहती है।

Conclusion

भारत एक ऐसा देश है जहाँ कई सारे प्राचीन मंदिर है। हर मंदिर की अपनी अपनी मान्यताएं है। इन्ही मंदिरो में से एक है Tirupati Balaji मंदिर। यह मंदिर माता लक्ष्मी की रूप भार्गवी और भगवान विष्णु के रूप श्रीनिवास से जुडी हुई है। इस मंदिर को लेकर कई सारी मान्यताएं है। इस मंदिर में लोग अपने बाल दान करके श्रीनिवास के ऋण चुकाने में उनकी मदद करते है। अगर आपको हमारा ये blog पसंद आया हो तो comment के through हमें जरूर बताएं।

Our more blogs in this category is here https://sandeshpatr.com/category/spritual/