Kashi Vishvanath! क्या है मंदिर का इतिहास? जाने भगवान शिव के इस ज्योतिर्लिंग से जुड़े सभी रहस्य…..1 min read

Kashi Vishvanath
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Kashi Vishvanath: हिंदू धर्म में भगवान शिव को बहुत ज्यादा महत्व दिया जाता है। शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो इनकी पूजा ना करता हो। भगवान शिव को अक्सर लोग गुस्से में ही देखते हैं लेकिन सच्चाई तो ये है कि ये सबसे ज्यादा भोले हैं। इन्हें खुश करना काफी आसान है। अगर एक बार भगवान शिव आपसे खुश हो गए तो आपको आपकी मर्जी का वरदान जरूर देंगे। लेकिन जब इन्हें एक बार गुस्सा आ गया तो ये क्या कर सकते हैं ये तो हम सभी जानते हैं। उनके क्रोध तांडव से समस्त देवी देवता डरते हैं और ये प्रयास करते हैं कि देवो के देव महादेव कभी भी क्रोधित न हों।

ऐसे तो भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग हैं और हर ज्योतिर्लिंग की अपनी कहानी और रहस्य है।अपने पिछले blog में हमने Somnath, Mallikarjuna, Rameshwaram, Kedarnath, Omkareshwar and Mahakaleshwar ज्योतिर्लिंगो के बारे में बताया है। आज के blog में हम भारत के सबसे विवादास्पद ज्योतिर्लिंग यानी Kashi Vishvanath के बारे में बताएंगे।

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Kashi Vishvanath Temple

यह मंदिर विश्व के सबसे पुराने शहर वाराणसी में पवित्र गंगा नदी के तट पर में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि ये मंदिर भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है जिसका इतिहास हज़ारों साल पुराना है। Kashi Vishvanath को भगवान शिव का प्रथम शिवलिंग माना जाता है। यह मंदिर हिंदू धर्म के सबसे पवित्र पूजा स्थलों में से एक है। इस मंदिर को विश्वेश्वर महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। विश्वेश्वर का मतलब होता है “ब्रह्माण्ड का शासक।” ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्‍नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

वाराणसी को पुराने समय में काशी के नाम से जाना जाता था इसलिए इस मंदिर को Kashi Vishvanath भी कहा जाता है। इस मंदिर में आज भी प्राचीन शैव विधि से पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य, गोस्वामी तुलसीदास और संत एकनाथ ने इस मंदिर में आकर पूजा की है। इसी मंदिर में सन्त एकनाथ ने वारकरी सम्प्रदाय का महान ग्रन्थ श्रीएकनाथी भागवत पूरा किया और काशीनरेश द्वारा उस ग्रन्थ की हाथी पर धूमधाम से शोभायात्रा निकाली गयी।

काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास

मंदिर का इतिहास कई हजार साल पुराना है और यह भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। इस मंदिर का उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी किया गया है। इस मंदिर को बहुत बार मुस्लिमों द्वारा तोड़ा गया है। 11th Century BCE में राजा हरिश्चंद्र ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।

विश्वनाथ मंदिर को इतिहास में कई मुस्लिम शासकों द्वारा बार बार तोड़ा गया। साल 1194 में Mahmud Gauri ने लुटपाट के बाद इस मंदिर को तोड़वा दिया था। गौरी के मंदिर तोड़ने के बाद इस मंदिर का निर्माण किसने करवाया, इतिहास में कोई भी जिक्र नहीं है। 1447 में जौनपुर के शासक सुलतान महमूद शाह ने इस मंदिर को एक बार फिर से तोड़ने का आदेश दिया।

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साल 1585 में राजा टोडरमल के मदद से नारायण भट्ट ने इस स्थान पर एक शानदार मंदिर बनवाया। मुगल शासक शाहजहाँ ने 1632 में एक order issue करके इस मंदिर को फिर से गिराने का आदेश दिया but हिंदुओं के जबरदस्त विरोध के कारण शाहजहां को अपना order वापस लेना पड़ा।

1669 में औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया जिसकी copy आज भी Asiatic Library, Kolkata में सुरक्षित है और देखी जा सकती है। औरंगजेब के ही आदेश पर इस मंदिर को तोड़ कर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण करवाया गया और यहीं से भारत का सबसे बड़ा विवाद शुरू हुआ। औरंगजेब मुग़ल शासक था जिसने इस मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया था।

मंदिर का निर्माण

अभी जो मंदिर है उसका निर्माण इंदौर की महारानी देवी अहिल्याबाई होल्कर ने औरंगज़ेब के मंदिर गिराने के लगभग 125 सालो बाद 1780 में करवाया। 1853 में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने इस मंदिर में 1000 pure gold दान किया था। उनके द्वारा दान किये गए सोने से मंदिर के छत्र का निर्माण करवाया गया।

Gwalior की महारानी बैजाबाई ने इस परिसर में ज्ञानवापी मंडप का निर्माण करवाया और महाराजा नेपाल ने वहां भगवान शिव के वाहन नंदी की विशाल प्रतिमा बनवाई। इस मंदिर का संचालन 1983 से ही उत्तर प्रदेश सरकार कर रही है।

Kashi Vishvanath से जुडी मान्यता

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार काशी नगर भगवान शिव के त्रिशूल के नोक पर बसा हुआ है। जब भगवान शिव और माता पार्वती की शादी हुई तो भगवान शिव कैलाश पर रहते थे और माता पार्वती अपने पिता दक्ष के पास। एक बार जब भगवान शिव माता पार्वती से मिलने आए तो माता ने उन्हें अपने साथ ले जाने की प्रार्थना की। माता पार्वती की बात मानकर भगवान शिव उन्हें काशी ले आए और तब से यहीं बस गए।

इस इस मंदिर का उल्लेख महाभारत में भी है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में भगवान शिव स्वयं रहते है। एक और मान्यता ये भी है कि एक बार भगवान शिव के वाहन नंदी ने उनसे पूछा हे प्रभु सब आपकी पूजा तो करते है तो लेकिन मेरी तरफ कोई ध्यान भी नहीं देता तो भगवान शिव ने नंदी को वरदान दिया कि काशी में जो भी मेरी पूजा करने आएगा उसे मेरी पूजा करने से पहले तुम्हारी पूजा करनी होगी तभी उसकी मनोकामना पूरी होगी।

इसके बाद से ही मंदिर परिसर में बने नंदी की विशाल प्रतिमा की पूजा की जाने लगी और इसके साथ ही भगवान शिव के हर मंदिर में नंदी की पूजा की जाने लगी।

Kashi Vishvanath और विवाद

औरंगज़ेब के मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने के बाद से ही विवाद शुरू हो गया। मंदिर परिसर में ही मस्जिद का निर्माण किया गया है। ऐसा कहा जाता है कि मंदिर की ही मूल जगह पर मस्जिद बनाई गई है। ज्ञानवापी मस्जिद को मुगल शासक औरंगजेब ने मंदिर तोड़कर बनवाया था।

Kashi Vishvanath

कुछ लोगों का ये भी कहना है कि 1585 में अकबर ने दीन-ए-इलाही नियम के तहत मस्जिद और मंदिर का निर्माण करवाया। वही कुछ historians का ये भी मानना है कि औरंगजेब दीन-ए-इलाही के खिलाफ था, इसीलिए उसने मंदिर को तोड़ दिया ।

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ज्ञानवापी नाम कैसे पड़ा ?

कुछ मान्यताओं के अनुसार अकबर ने 1585 में नए दीन-ए-इलाही के तहत विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई थी। मस्जिद और विश्वनाथ मंदिर के बीच 10 फीट गहरा कुआं है, जिसे ज्ञानवापी कहा जाता है। इसी कुएं के नाम पर मस्जिद का नाम पड़ा। स्कंद पुराण के अनुसार भगवान शिव ने अपने जलाभिषेक के लिए अपने त्रिशूल से ये कुआं बनाया था। इसी परिसर में भगवान शिव ने माता पार्वती को ज्ञान दिया था इसलिए इस जगह को ज्ञानवापी पड़ा।

Conclusion

ये मंदिर शुरू से ही विवादों के साथ रहा है। प्राचीन समय में वाराणसी का नाम काशी था इसलिए इस स्थान को काशी विश्वनाथ कहा जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर को विश्वेशर महादेव भी कहा जाता है। मंदिर से जुड़ी कई सारी मान्यताएं भी है। इस मंदिर को हर इतिहासकार की अपनी अलग कहानी है।

यह मंदिर दुनिया के सबसे पुराने शहर में है और ये मंदिर भारत के सबसे पुराने मंदिरो में से एक है। अभी जो मंदिर है उसका निर्माण इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर और पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने मिलकर करवाया है। अगर आपको हमारा ये blog पसंद आया हो तो हमें comment के through जरूर बताये।

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