Jagannath Puri: भारत मंदिरो, देवी देवताओ का देश है। यहाँ कई सारे पुराने and historical मंदिर है। पुरे देश हर समय कोई न कोई festival जरूर होता है। इसी तरह इस समय पुरे देश में भगवान जगन्नाथ की पवित्र रथ यात्रा चल रही है। ऐसे में आपके मन ने कभी न कभी ये ख्याल तो जरूर आया ही होगा की रथ यात्रा क्यों होती है ?
इसके पीछे की कहानी क्या है ? किसने इस मंदिर का निर्माण करवाया ? श्रीकृष्ण के इस रूप की खासियत क्या है ? ऐसे में आज का ये खास blog आपके सारे सवालों का जबाब देने की पूरी कोशिश करेगा।
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हिन्दुओ के सबसे पवित्र चार धामों Badrinath, Dwarka, Rameshwaram और Puri में से एक यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। इस मंदिर को हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र मंदिरो में से एक माना जाता है। ऐसा कहा जाता है की चार धामों में से सबसे आखिर में इस मंदिर का दर्शन किया जाना चाहिए। इस मंदिर से जुड़ी ऐसी कई सारी मान्यताएं है जो इस मंदिर को बेहद खास मनाती है। इस स्थान को शाकक्षेत्र, नीलांचल और नीलगिरि भी कहते हैं। अनेकों पुराणों के अनुसार पुरी में भगवान कृष्ण ने अनेकों लीलाएं की थीं और नीलमाधव के रूप में यहां अवतरित हुए। उड़ीसा स्थित यह धाम भी द्वारका की तरह ही समुद्र तट पर स्थित है।
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यहाँ भगवान विष्णु जगन्नाथ के रूप में अपने बड़े भाई बालभद्र और बहन सुभद्रा के साथ निवास करते है। यह मंदिर ओडिशा के पुरी में है। पुराणों के अनुसार ऐसा माना जाता है की भगवान विष्णु बद्रीनाथ में स्नान करके, द्वारका में अपने कपडे बदलकर पूरी पहुंचते है और वहां भोजन करते है और फिर आखिर में रामेश्वरम में आराम करते है। भगवान विष्णु के इस मंदिर को धरती का बैकुंठ भी माना जाता है।
माना जाता है कि मंदिर से जुड़ी ऐसी कई कहानियां हैं, जो सर्दियों से आज तक एक रहस्य ही बनी हुई हैं। ऐसा बताया जाता है कि मंदिर के ऊपर से कोई भी विमान नहीं उड़ा सकता और तो और पक्षी भी उड़ने से डरते हैं।
मंदिर का इतिहास
मंदिर के रिकॉर्ड के अनुसार, अवंती के राजा इंद्रद्युम्न ने पुरी में जगन्नाथ का मुख्य मंदिर बनवाया था। वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण 10th century के बाद से, परिसर में पहले से मौजूद मंदिरों के स्थल पर किया गया था। मंदिर में जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की लकड़ी की मूर्तियां है। हर 12 साल में इन तीनो मूर्तियों को बदला जाता है।
Genrally मंदिरो में एक या दो प्रवेश द्वार होते है but इस मंदिर में चार प्रवेश द्वार है जिसमे मुख्य द्वार को सिंहद्वारम कहते हैं। ऐसी मान्यता है की सिंहद्वारम द्वार पर समुद्र लहरों की आवाज सुनाई देती है, लेकिन मंदिर में enrty करते ही लहरों का शोर बिल्कुल खत्म हो जाता है।
Jagannath Puri में आधी है मूर्तियां
पुराणों के अनुसार जब विश्वकर्मा, एक बूढ़े बढ़ई के रूप में इस मंदिर की मूर्तियों का निर्माण कर रहे तो उन्होंने एक शर्त रखा था। उनके अनुसार वो दरवाजा बंद करके इस की इस मूर्ति का निर्माण करेंगे और जब तक दरवाजा बंद रहेगा तभी तक वो मूर्ति का निर्माण करेंगे।
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राजा नित्यप्रति बंद दरवाजे पर कान लगाकर सुनते थे की क्या सच में अंदर मूर्ति बन रही है या नहीं। एक दिन जब राजा को आवाज़ सुनाई नहीं दी उसे लगा की मूर्ति की निर्माण पूरा हो गया है और उसने दरवाजा खोल दिया। दरवाजा खोलते ही विश्वकर्मा वहां से चले गए। तब से लेकर आज तक भगवान जगन्नाथ, बालभद्र और सुभद्रा की मुर्तिया अधूरी ही है।
Jagannath Puri की मूर्ति में धड़कता है श्रीकृष्ण का दिल
पौराणिक मान्यता के अनुसार जब श्रीकृष्ण अपना शरीर त्यागकर वैकुंठ चले गए तो उनके पार्थिव शरीर का पांडवों ने दाह संस्कार किया। लेकिन इस दौरान उनका दिल जलता ही रहा। पांडवों ने उनके जलते हुए दिल को जल में प्रवाहित कर दिया, तब यह दिल लाठी के रूप में परिवर्तित हो गया। यह लाठी राजा इंद्रदयुम्न को मिल गया और उन्होंने भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के अंदर इसे स्थापित कर दिया and तब से वह यहीं है।
हालांकि हर बारह वर्ष बाद मूर्ति बदली जाती है पर लाठी अपरिवर्तित रहता है। आश्चर्य की बात तो यह है कि मंदिर के पुजारियों ने भी इसे कभी नहीं देखा है। लाठी परिवर्तन के समय पुजारी की आँखों पर पट्टी बांध दी जाती है और हाथ कपड़े से ढके हुए होते हैं। बगैर देखे और बिना स्पर्श किए इस लाठी को पुरानी मूर्ति में से निकल कर नई मूर्ति में स्थापित कर दिया जाता है, उनके एहसास के मुताबिक यह लाठी बहुत कोमल है। मान्यता है कि कोई यदि इसको देख लेगा तो उसके प्राणों को खतरा हो सकता है।
Jagannath Puri Temple का structure
मंदिर के शिखर पर एक चक्र और लाल ध्वज स्थापित किया गया है। यह चक्र और लाल ध्वज इस बात का प्रतीक है की इस मंदिर में भगवान वास करते है। आठ अलग अलग धातुओं से बने इस चक्र को नीलचक्र भी बोला जाता है। मंदिर के शिखर पर स्थापित ध्वज हमेशा हवा के विपरीत दिशा में लहराता है। मंदिर में चार कक्ष भी है जिसे भोग मंदिर, नाथ मंदिर, जगमोहन मंदिर और जगन्नाथ मंदिर है। मंदिर का परिसर चारो तरफ से एक दीवार से घिरा हुआ है जिसके चारो ओर एक एक प्रवेश द्वार है।
Interesting Facts about Jagannath Puri
इस मंदिर के शिखर पर स्थापित नीलचक्र को मंदिर में से कही से ही सीधा देखा जा सकता है। ऐसा माना जाता है की इस मंदिर की रक्षा भगवान विष्णु का वाहन गरुड़ करता है। गरुड़ को पक्षियो का राजा बोला जाता है और सारे पक्षी उससे डरते है इसलिए कोई भी पक्षी मंदिर के ऊपर से नहीं उड़ता है। इतना ही नहीं ऐसा भी माना जाता है की नीलचक्र के प्रभाव से सारे aeroplanes effect हो सकते है इसलिए मंदिर के ऊपर से कोई भी aeroplane नहीं जाता है। मंदिर में बनने वाला प्रसाद कभी कम नहीं होता है।
Rath Yatra का महत्त्व
भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष बोला जाता है। इस रथ में 16 पहिये होते है। वही रथ को खींचने के लिए पीले रंग के कपडे का use होता है। बालभद्र के रथ को तालध्वज बोला जाता है। इस रथ को जिस रस्सी के खींचा जाता है उसे वासुकि बोला जाता है। वही बहन सुभद्रा के रथ को पद्मध्वज बोला जाता है।
ऐसी मान्यता है की रथ यात्रा के केवल दर्शन करने से ही हमें 1000 यज्ञो का फल प्राप्त होता। है स्कंदपुराण में ऐसा बोला गया है की रथ यात्रा में जो इंसान सच्चे मन से भगवान जगन्नाथ का नाम लेते हुए गुंडीचा नगर तक जाता है, वह पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाता है।
जो व्यक्ति गुंडिचा मंडप में रथ पर विराजमान श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा देवी के दर्शन दक्षिण दिशा को आते हुए करते हैं उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है। रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ जनता के बीच आते हैं और उनके सुख दुख में सहभागी होते हैं।
अपनी मौसी के घर जाते है भगवान
रथयात्रा के दौरान भगवान अपने मौसी के घर जनकपुर जाते है। अपनी मौसी के घर अच्छे अच्छे पकवान खाकर भगवान जगन्नाथ बीमार हो जाते हैं। तब यहाँ पथ्य का भोग लगाया जाता है जिससे भगवान शीघ्र ठीक हो जाते हैं। रथयात्रा के तीसरे दिन पंचमी को लक्ष्मी जी भगवान जगन्नाथ को ढूँढ़ते यहाँ आती हैं।
तब द्वैतापति दरवाज़ा बंद कर देते हैं जिससे लक्ष्मी जी नाराज़ होकर रथ का पहिया तोड़ देती है और अपने घर लौट जाती हैं। बाद में भगवान जगन्नाथ लक्ष्मी जी को मनाने जाते हैं। उनसे क्षमा माँगकर और अनेक प्रकार के उपहार देकर उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं।
Conclusion
भगवान श्रीकृष्ण का ये रूप अत्यंत ही मनमोहक है। इस रूप में श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई बालभद्र और बहन सुभद्रा के साथ निवास करते है। हर साल भगवान अपने भाई बहन के साथ अपनी मौसी के घर जाते है। Jagannath Puri के इस मंदिर की बहुत सारी मान्यता है। इस मंदिर के ऊपर से कोई भी पक्षी या aeroplane नहीं उड़ता है। इतना ही नहीं इस मंदिर में बनने वाला प्रसाद कभी भी ख़त्म नहीं होता है।
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