Garuda Purana : मरने के बाद ऐसे लोगों को प्राप्त होता है स्वर्ग लोक1 min read

Garuda Purana
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Garuda Purana : जीवन काल में किए गए कर्मों का महत्व भारतीय संस्कृति में विशेष रूप से माना जाता है। इस परंपरा के अनुसार, व्यक्ति के जीवन में किए गए कर्म उसके अगले जन्म को निर्धारित करते हैं। Garuda Purana में भी इस विचार का विस्तार से वर्णन है। यह पुराण व्यक्ति के देह त्यागने के बाद उसके कर्मों के आधार पर अगले जन्म की यात्रा को बताता है।

कर्म का उदाहरण देते समय, यमराज प्रकट होते हैं और व्यक्ति के अच्छे और बुरे कर्मों का मूल्यांकन करते हैं। अच्छे कर्मों का फल स्वर्ग या उन्नति की योनि मिलता है, जबकि बुरे कर्मों का फल नरक या नीचे की योनि में जन्म लेना होता है। इस प्रकार, व्यक्ति के उत्तम या अधम कर्मों के आधार पर ही उसका अगला जन्म तय होता है।

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यह धारणा संजीवनी भी है क्योंकि यह लोगों को उनके कर्मों के परिणामों को स्वीकार करने की प्रेरणा देती है। अच्छे कर्म करने वाले व्यक्तियों को स्वर्ग का सुख प्राप्त होता है, जो कि एक उच्च और धार्मिक स्थान के रूप में वर्णित किया गया है। वहाँ उन्हें सुख और आनंद की अनंतता का अनुभव होता है।

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उसी प्रकार, बुरे कर्म करने वाले व्यक्तियों को नरक की सजा मिलती है, जो कि पीड़ा और दुःख का स्थान होता है। नरक में उन्हें अनंत तप्ति और विपत्तियों का सामना करना पड़ता है। यह उन्हें अपने गलत कर्मों के लिए सजा भुगतने का अनुभव कराता है और उन्हें धर्म की महत्वपूर्णता को समझाता है।

इस प्रकार, Garuda Purana में व्यक्ति के कर्मों के अनुसार उसके अगले जन्म की यात्रा को विस्तार से वर्णित किया गया है। यह सिद्ध करता है कि हर व्यक्ति के कर्मों का महत्व होता है और उनके कर्मों के अनुसार ही उसका अगला जन्म तय होता है। इसलिए, समाज में नैतिकता और धर्म का पालन करना महत्वपूर्ण है ताकि व्यक्ति अच्छे कर्मों का फल भोग सके और अपने आत्मा को शुद्ध बनाए रख सके।

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सनातन धर्म में पुनर्जन्म की धारणा व्यापक रूप से प्रचलित है और इसे वेद, पुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों में विस्तृत रूप से वर्णित किया गया है। अनुसार सनातन धर्म के शास्त्रों के अनुसार, व्यक्ति के कर्मों के अनुसार ही उसका पुनर्जन्म होता है। यह जीवन के प्रत्येक कार्य की प्रारंभिक विचारशीलता को साबित करता है, क्योंकि कर्मों के फल को भुगतने के लिए व्यक्ति को पुनर्जन्म के जन्म और मृत्यु का चक्र पार करना होता है।

Garuda Purana में, व्यक्ति के देह त्यागने के बाद उसके कर्मों के आधार पर उसका अगला जन्म तय होता है। यमराज, मृतक के कर्मों का मूल्यांकन करते हैं और उसे उसके कर्मों के अनुसार स्वर्ग या नरक में भेजने का फैसला करते हैं। अच्छे कर्म करने वाले को स्वर्ग में उत्तम सुख प्राप्त होता है, जबकि बुरे कर्म करने वाले को नरक में दुःख और पीड़ा भोगनी पड़ती है।

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इसके अलावा, Garuda Purana में उल्लेख किया गया है कि व्यक्ति के देह त्यागने के बाद उसकी आत्मा को उसके कर्मों के अनुसार ही उसका स्थान निर्धारित किया जाता है। आत्मा को उसके धर्म और अधर्म के आधार पर उसका पुनर्जन्म का स्थान तय किया जाता है। इस तरह, व्यक्ति के देह त्यागने की स्थिति से ही उसके कर्मों का फल और उसका अगला जन्म निर्धारित होता है।

इस प्रकार, सनातन धर्म में पुनर्जन्म की सिद्धांत व्यक्ति को उसके कर्मों के लिए जिम्मेदार बनाता है और उसे नैतिकता और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। इसके अलावा, यह उसे अपने कर्मों के परिणामों को स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित करता है और उसे अपने जीवन को धार्मिकता और सद्गुणों से भर देने का मार्ग दिखाता है। आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं ।

गीता में उल्लेख

श्रीकृष्ण भगवान के वचनों में गीता के अद्वितीय उपदेशों का एक अत्यंत महत्वपूर्ण सन्देश है। उन्होंने अपने परम शिष्य अर्जुन को बताया कि पुण्यात्मा का देह त्याग करने पर वह तत्क्षण मोक्ष की प्राप्ति को प्राप्त होता है। यहां, उन्होंने सूर्य के उत्तरायण के समय का उल्लेख किया है, जो कि प्राय: मार्गशीर्ष मास के पहले महीने से शुरू होता है और जब सूर्य उत्तरायण में होता है, तो पुण्य का क्षेत्र बढ़ता है। इस समय में जब पुण्यात्मा अपना देह त्यागता है, तो उसे तत्क्षण मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह आध्यात्मिक सत्य को प्रकट करता है कि पुण्यात्मा को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

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विशेष रूप से, उन्होंने सूर्य के दक्षिणायन के समय का उल्लेख किया है, जो कि प्रायः आषाढ़ मास के पहले महीने में होता है और जब सूर्य दक्षिणायन में होता है, तो पाप का क्षेत्र बढ़ता है। उन्होंने कहा कि इस समय में जब पुण्यात्मा अपना देह त्यागता है, तो वह चंद्रलोक में स्थान प्राप्त करता है। चंद्रलोक स्वर्ग के एक उच्च स्तर को प्रतिनिधित्ता करता है जिसमें अत्यंत शांति और सुख का अनुभव होता है।

इस प्रकार, भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में बताया है कि समय के अनुसार पुण्यात्मा को स्वर्ग या चंद्रलोक की प्राप्ति होती है, जो कि आत्मा के पुनर्जन्म के प्रकार को निर्धारित करता है। उन्होंने समझाया कि जीवात्मा को पुनः मृत्यु लोक में आना पड़ता है, लेकिन सुर्योदय और सूर्यास्त के समय के आधार पर उसका अगला जन्म तय होता है। इसलिए, वे संतों को सूर्य उत्तरायण के समय में समाधि लेने का सुझाव देते हैं, ताकि उनके आत्मा को स्वर्ग की प्राप्ति हो सके। यह उन्हें आध्यात्मिक सच्चाई को समझने और अपने जीवन को धार्मिकता के मार्ग पर स्थापित करने के लिए प्रेरित करता है।

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Garuda Purana में ऊँचे और नीचे लोकों के विविधता का विवरण मिलता है। भगवान नारायण गरुड़ जी से कहते हैं कि जब कोई पुण्यात्मा अपना देह त्यागता है, तो वह उच्च लोकों में स्थान प्राप्त करता है। यहां उच्च लोक स्वर्ग का उल्लेख है, जहां पुण्यात्माओं को अत्यंत सुख और आनंद का अनुभव होता है। ये स्थान धर्म, नैतिकता और पुण्य के आधार पर प्राप्त किये जा सकते हैं। कुछ पुण्यात्माओं को कर्मों के अनुसार स्वर्ग से ऊपर के लोक में भी स्थान प्राप्त होता है। यहां भी उन्हें अत्यंत उच्च स्थान प्राप्त होता है जहां उन्हें अधिक आध्यात्मिक ज्ञान और अद्वितीय आनंद का अनुभव होता है।

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जब कोई व्यक्ति अपना देह त्यागता है और नीचे लोकों में जाता है, तो उसे नीच लोक में स्थान प्राप्त होता है। इसमें नरक का उल्लेख है, जो कठोर प्राणी, क्रूरता और अधर्म का स्थान होता है। यहां व्यक्ति को अत्यधिक कठिनाई और पीड़ा का सामना करना पड़ता है, और वहां उसे यमराज द्वारा दी जाने वाली कठोर यातना का सामना करना पड़ता है। यहां की यात्रा के दौरान उसे आग, पानी, हवा आदि भयानक चीजों से प्रताड़ित किया जाता है।

इस विवरण से Garuda Purana ने हमें समझाया है कि पुण्यात्मा के अनुसार उसका स्थान ऊपर या नीचे का होता है, और यह उसके कर्मों और धर्म के आधार पर निर्भर करता है। इसके अलावा, यह भी बताता है कि स्वर्ग और नरक के स्थानों में जीवात्मा को उनके कर्मों के अनुसार निर्धारित किया जाता है। इसलिए, हमें सदैव धार्मिकता के मार्ग पर चलना चाहिए, ताकि हम अपने भविष्य को स्वर्ग के समीप ले जा सकें।

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