Dwarkadhish Temple: भारत एक ऐसा देश है जहाँ सबसे ज्यादा importance देवी देवताओ को दिया जाता है। यहाँ कई सारे ऐसे मंदिर है जो कि काफी mysterious है। उनमे से कई मंदिर की mystery time के साथ हमें पता चल गयी है but कई सारे मंदिर ऐसे भी है जिनकी mystery अभी तक solve नहीं हुई है।
India के पुराने मंदिरो की बात की जाये तो उनमे श्रीकृष्ण को dedicate Dwarkadhish Temple का नाम जरूर आता है। यह मंदिर अपने आप में एक बहुत mystery है। आज हम आप आपको भगवान श्रीकृष्ण के इस दिव्य और भव्य मंदिर के बारे में बताएँगे।
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भगवान श्रीकृष्ण का ये मंदिर गुजरात के द्वारका में है। यह मंदिर भारत के चार धामों और भारत के 7 सबसे पवित्र मंदिरो में से एक है। यह मंदिर समुद्र में डुबा हुआ है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इसे अपनी राजधानी बनाई थी और वो यही निवास करते थे।
इस मंदिर को जगत मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। जब श्रीकृष्ण मथुरा छोड़कर द्वारका चले तो उन्होंने वहां द्वारकानगरी के नाम से एक शहर बसाया। ऐसा कहा जाता है कि जिस इंसान को जीवन और मरण से मुक्ति पाना चाहता है और जिसे मोक्ष पाना है वो इस मंदिर का दर्शन करता है।
मंदिर का इतिहास
ऐसा माना जाता है कि Dwarkadhish Temple लगभग 2200 साल पुराना है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण श्रीकृष्ण के वंशज व्रजभान ने करवाया था। पौराणिक कथाओं में कहा जाता है कि यह स्थान ‘हरि गृह’ यानि भगवान कृष्ण जी का निवास स्थल हुआ करता था, जिसे बाद में मंदिर के रूप में बनाया गया।
मंदिर के अन्य नाम
Dwarkadhish Temple को कई नामों से जाना जाता है। इस मंदिर को कृष्ण मंदिर, द्वारिका मंदिर and हरि मंदिर केनाम से जाना जाता है but इस मंदिर को Dwarkadhish Temple के बाद सबसे अधिक जगत मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर को निज मंदिर के रूप में भी जाना जाता है।
Story of Dwarkadhish Temple
एक पौराणिक कथा के अनुसार सालो पहले यहां रैवत नाम के एक राजा ने यज्ञ किया था। तब से इस स्थान को कुशस्थली कहा जाने लगा। कुछ समय बाद यहां कुश नामक राक्षसों का आगमन हुआ, जिसने यहां के लोगों को परेशान करना शुरू कर दिया।
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राक्षसों से परेशान होकर सभी लोगों ने भगवान ब्रह्मा की तपस्या की। इसके बाद भक्तों की रक्षा के लिए ब्रह्मा जी ने त्रिविक्रम भगवान को प्रकट किया। त्रिविक्रम भगवान ने राक्षसों का वध कर धरती में गाड़ दिया। इसके बाद माना जाता है कि द्वारकाधीश के दर्शन के बाद कुशेश्वर पर जाना आवश्यक है।
मंदिर की मान्यता
ऐसी मान्यता है की इस मंदिर का निर्माण श्रीकृष्ण के परपोते वज्रनाभ ने करवाया था। अलग अलग समय में इस मंदिर के condition में changes हुए but इसमें जो मूर्ति है उसमे किसी भी type का changes नहीं हुआ। इस मंदिर के गर्भगृह में चाँदी के सिंहासन पर भगवान कृष्ण की श्यामवर्णी चतुर्भुजी मूर्ति है।
यह पांच मंजिला मंदिर 72 स्तंभों पर बना हुआ है। कहा जाता है कि श्रीकृष्ण उत्तराखंड के बद्रीनाथ के सरोवर में स्नान के बाद द्वारका में अपने कपडे बदलते हैं, फिर जगन्नाथ पुरी में भोजन करते हैं और रामेश्वरम धाम में विश्राम करते हैं। इस दौरान वह भक्तों के बीच आते हैं।
प्रवेश द्वार की मान्यता
इस मंदिर के प्रवेश द्वार के बारे ने ऐसा बोला जाता है कि इसका उत्तर द्वार मोक्ष का द्वार है और दक्षिण द्वार स्वर्ग का द्वार है। दक्षिण द्वार के बारे में बोला जाता है कि यहाँ 56 सीढ़ियां है जिसे पार करने के बाद हम स्वर्ग जा सकते है।
रुक्मिणी मंदिर
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, द्वारका का निर्माण कृष्ण द्वारा जमीन के उस एक टुकड़े पर किया गया था जो समुद्र से प्राप्त हुआ था। एक बार ऋषि दुर्वासा कृष्ण और उनकी पत्नी रुक्मिणी से मिलने गए । ऋषि दुर्वासा की इच्छा थी कि कृष्ण और रुक्मिणी उन्हें अपने महल में ले जाए। यह जोड़ा आसानी से मान गया और ऋषि दुर्वासा के साथ उनके महल में जाने लगा।
कुछ दूर जाने के बाद रुक्मिणी थक गईं और उन्होंने कृष्ण से पानी मांगा। कृष्ण ने एक पौराणिक छेद खोदा जो गंगा नदी में लाया गया था। ऋषि दुर्वासा गुस्सा हो गए और रुक्मिणी को उसी जगह रहने के लिए श्राप दे दिया। जिस जगह पर रुक्मिणी खड़ी थी, उसी जगह पर रुक्मिणी का मंदिर है।
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राधा के सपने से हुआ Dwarkadhish Temple का निर्माण
इस मंदिर के बारे में ऐसा भी बोला जाता है कि एक बार राधा रानी ने सपने में एक ऐसा नगर देखा जो बहुत ही सुन्दर था। वह नगर समुद्र के बीच में था। राधा रानी ने जब इस सपने के बारे में श्रीकृष्ण को बताया तो उन्होंने कहा तुम्हारी इच्छा मेरे लिए आदेश है। राधा के सपने को पूरा करने के लिए श्रीकृष्ण ने विश्वकर्मा से मदद मांगी और उन्होंने एक रात में ही राधा रानी के सपने जैसा नगर बना दिया।
Religious importance
मंदिर के ऊपर एक झंडा है जिसे daily 5 बार बार change किया जाता है। झंडा में सूरज और चाँद के निशान है जो यह बताता है की जब तक सूरज और चाँद रहेगा, तब तक श्रीकृष्ण रहेंगे। इस झंडे की एक खासियत है कि हवा चाहे किसी भी direction की हो यह झंडा हमेशा west तो east ही लहराता है। मंदिर सुबह 6 बजे से दोपहर 1.00 बजे तक और शाम 5.00 बजे से रात 9.30 बजे तक खुला रहता है।
Architecture of Dwarkadhish Temple
Dwarkadhish Temple का निर्माण बेहद ही भव्य तरीके से किया गया है। इस का निर्माण Chalukyan Style में निर्मित गया है, जिसमें चूना पत्थर और रेत का इस्तेमाल किया गया है, जो भारत की प्राचीनतम शैली को दर्शाता है। यह भी कहा जाता है कि यह मंदिर एक पत्थर के टुकड़े पर बना हुआ है। पांच मंजिला यह मंदिर 72 स्तंभों पर बना हुआ है, जो किसी भी अद्भुत से कम नहीं है।
Conclusion
भगवान श्रीकृष्ण का ये मंदिर समुद्र के बीच है। ऐसा कहा जाता है कि जिस दिन राधा रानी ने द्वारका नगरी छोड़ी थी उस दिन ये नगर समुद्र के नीचे समा गया था। मथुरा और वृन्दावन छोड़ने के बाद श्रीकृष्ण अपने परिवार के साथ यही रहने लगे थे। यह नगर उस समय की सबसे भव्य और सुरक्षित नगर था। जिस जगह श्रीकृष्ण का आवास था वही आज द्वारकाधीश मंदिर है जिसे उनके परपोते ने बनवाया था। अगर आपको यह blog पसंद आया हो तो comment के through हमें जरूर बताएं।
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