Badrinath Temple: भारत मंदिरों का देश है। यहाँ कई सारे मंदिर ऐसे है जो काफी प्राचीन है। सभी मंदिरो को अपनी अलग अलग mystery and history है। इन मंदिरो को बहुत ही विशेष मान्यता है। हिन्दू धर्म के अनुसार 33 करोड़ देवी देवता मौजूद है। हर इंसान की अलग अलग भगवान में अपनी मान्यता रखता है। कोई शिवजी की पूजा करता है तो कोई हनुमान की। कोई राम की पूजा करता है तो कोई कृष्णा की। कोई दुर्गा को पूजता है तो कोई काली को।
लेकिन हर एक हिन्दू फिर चाहे वो किसी भी देवी देवता का अनुयायी हो अपने जीवन में अपने से कम से कम एक बार Badrinath Temple का दर्शन जरूर करना चाहता है। कई सारे लोग इस बात को लेकर confuse रहते है की यह मंदिर भगवान विष्णु को dedicate है या महादेव को। आज के इस blog में हम देश के चार धामों में से सबसे important, Badrinath Temple के पुरे history and mystery को जानने की कोशिश करेंगे।
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यह मंदिर उत्तराखंड में हिमालय की वादियों में अलकनंदा नदी के किनारे बसा हुआ है। यह मंदिर हिन्दुओ के लिए सबसे पवित्र मंदिरो में से एक है। सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु को dedicate यह मंदिर अपनी सुंदरता के लिए बहुत famous है।
इस मंदिर में भगवान विष्णु माता लक्ष्मी के साथ निवास करते है। इसी मंदिर के नाम पर इस शहर का नाम बद्रीनाथ पड़ा। यह मंदिर कई मायनो में बहुत ही खास है। हर मंदिर के तरह इस मंदिर से भी जुडी कई सारी मान्यतायें देखने और सुनने को मिलती है।
मंदिर से जुड़ी मान्यताएं
एक बार जब देवर्षि नारद, भगवान विष्णु से मिलने आये तो उन्होंने देखा की माता लक्ष्मी भगवान विष्णु के पैर दबा रही है। जब इस बारे में नारद मुनि ने भगवान विष्णु से पूछा तो भगवान विष्णु खुद को दोषी मानकर वहां से चले गए। उन्होंने हिमालय पर जाकर तपस्या करनी शुरू कर दी।
जब भगवान विष्णु अपने कठिन तपस्या में लीन थे तभी बहुत बर्फ़बारी होने लगी और भगवान विष्णु का शरीर बर्फ से ढकने लगा। तब माता लक्ष्मी ने एक बहुत ही विशाल बेर के पेड़ का रूप धारण किया और भगवान विष्णु को बारिश, धुप एयर बर्फ़बारी से बचाती रही।
अपनी तपस्या पूरी करने के बाद जब भगवान विष्णु जागे तो उन्होंने देखा कि माता लक्ष्मी पूरी तरह बर्फ से ढकी हुई है। तब भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी से कहा कि तुमने मेरे बराबर ही तप किया है इसलिए आज से इस स्थान पर मेरी पूजा के साथ ही तुम्हारी भी पूजा होगी और उन्होंने माता लक्ष्मी को वरदान देते हुए कहा कि तुमने बद्री के पेड़ के रूप में मेरी रक्षा की है इसलिए आज से मुझे बद्री का नाथ यानि की बद्रीनाथ बोला जायेगा।
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महादेव से माँगा तप के लिए स्थान
पुराणों के अनुसार बद्रीनाथ और उसके आस पास का पूरा स्थान महादेव के केदारनाथ के रूप में था। जब भगीरथ ऋषि ने गंगा को धरती पर बुलाया तो यह 12 अलग अलग धाराओं में divide हो गई और अलकनंदा के रूप में इस स्थान पर बहने लगी।
भगवान विष्णु जब तपस्या करने के लिए एक योग्य स्थान खोज रहे थे और खोजते खोजते वो अलकनंदा नदी के किनारे पहुंचे। उन्हें ये स्थान बहुत पसंद आया। लेकिन उन्हें ये बात पता थी कि यह महादेव का है तो उन्होंने नीलकंठ पर्वत के नजदीक एक बच्चे का रूप धारण किया और रोने लगे।
बच्चे के रोने की आवाज़ सुनकर महादेव माता पार्वती के स्थान वहां पहुंचे और पूछा की क्यों रो रहे हो। तब उस बालक ने बताया उसे ध्यान और तपस्या करने के लिए यह स्थान चाहिए। महादेव और माता पार्वती ने उस बालक को यह स्थान दे दिया।
विष्णु पुराण में ये है मान्यता
विष्णु पुराण के अनुसार धर्म के दो पुत्र हुए नर और नारायण। नर और नारायण ने धर्म के विस्तार के लिए कई सालो तक इस स्थान पर कठिन तपस्या की। नर और नारायण अपना आश्रम बनाने के लिए एक perfect place खोज रहे थे। जगह ढूंढते ढूंढते नर और नारायण ने वृद्ध बद्री, योग बद्री, ध्यान बद्री और भविष्य बद्री नामक चार स्थानों को देखा। आखिर ने उन्हें अलकनंदा के पीछे एक गर्म और ठन्डे पानी का चश्मा मिला जिसे नर और नारायण ने बद्री विशाल का नाम दिया।
महाभारत में भी है जिक्र
ऐसा माना जाता है की महर्षि वेद व्यासजी ने इसी स्थान पर महाभारत की रचना की और उनके अनुसार नर और नारायण ने अगले जन्म में अर्जुन और कृष्ण के रूप में जन्म लिया। महाभारत समाप्त होने के बाद पांडवो ने इसी स्थान पर अपने पूर्वजो का पिण्ड दान किया था। इसी वजह से यहाँ कई सारे भक्त अपने पूर्वजो का पिण्ड दान करने के लिए भी आते है।
क्या Badrinath Temple हमेशा के लिए गायब हो जायेगा ?
जोशीमठ में ठण्ड के मौसम में जिस स्थान पर बद्रीनाथ की मूर्ति रहती है वहां नृसिंह का भी एक मंदिर है। शालिग्राम पत्थर पर भगवान नृसिंह का एक बहुत ही अद्भुत प्रतिमा बनी हुई है। इस प्रतिमा का बाया हाथ पतला है जो time के साथ और भी पतला होता जा रहा है और ऐसा कहा जाता है कि जिस दिन ये हाथ मूर्ति से अलग हो जायेगा उस दिन नर और नारायण एक हो जायेंगे और बद्रीनाथ हमेशा के लिए गायब हो जायेगा।
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भगवान की आधी मूर्ति
जोशीमठ से कैलाश पर्वत की ओर जाने पर भविष्य बद्री नाम का एक स्थान है। यहाँ एक पत्थर का टुकड़ा है जिसे ध्यान से देखने पर भगवान विष्णु की आधी आकृति दिखाई पड़ती है। जब यह आकृति पूरी हो जाएगी वो बद्रीनाथ मंदिर यहाँ आ जायेगा।
इसे दूसरा बैकुंठ बोला जाता है
भगवान विष्णु का निवास स्थान बैकुंठ है। ये तो हम सभी जानते ही है। सतयुग में इसी स्थान पर पर भगवान विष्णु के साक्षात् दर्शन हुआ करते थे। मान्यताओं के अनुसार अभी जिस स्थान पर बद्रीनाथ मंदिर है उसे भगवान विष्णु का दूसरा निवास स्थान यानि की दूसरा बैकुंठ बोला जाता है और future में जिस स्थान पर बद्रीनाथ मंदिर होगा उसे भविष्य बद्री बोला जायेगा।
Badrinath Temple का इतिहास
इस मंदिर निर्माण 8th Century में आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी। 8th Century तक यह स्थान एक Buddhist monastery था जिसे बाद में शंकराचार्य ने हिन्दू मंदिर मे change कर दिया। शंकराचार्य 6 सालो तक यहाँ निवास किया। अपने निवास के दौरान शंकराचार्य 6 महीने बद्रीनाथ में और 6 महीने केदारनाथ में रहते थे।
कुछ मान्यताओं के अनुसार इस स्थान पर बद्रीनाथ की मूर्ति देवताओ ने स्थापित की थी जिसे बौद्धों ने अलकनंदा में फेक दिया था। शंकराचार्य ने ही अलकनंदा नदी में इस मूर्ति को खोजा और इसे तप्त कुंड के पास स्थापित किया। लेकिन कुछ समय बाद रामानुजाचार्य ने तप्तकुण्ड से निकाल कर इस मूर्ति को एक गुफा में स्थापित किया।
16th Century में इस मूर्ति को गुफा से निकाल कर गढ़वाल के राजा ने वर्तमान मंदिर में स्थापित किया। मंदिर बनने के बाद इंदौर की महारानी देवी अहिल्याबाई होल्कर ने इस मंदिर में सोने का छत्र चढ़ाया था। 20th Century में जब गढ़वाल राज्य को दो भागों में बांटा गया, तो बद्रीनाथ मन्दिर Britsh Rule के under आ गया but फिर भी मंदिर की management committee का president गढ़वाल का राजा ही होता था।
Conclusion
हिन्दुओ के लिए चार धाम की यात्रा काफी मायने रखती है। इन्ही चार धामों में से एक बद्रीनाथ का मंदिर। इस मंदिर को भगवान विष्णु का दूसरा निवास स्थान भी कहा जाता है। इसी स्थान पर माता लक्ष्मी ने बद्री के पेड़ के रूप में भगवान विष्णु की रक्षा की थी इसलिए इस स्थान को बद्रीनाथ कहा जाता है। अगर आपको ये blog पसदं आया हो हो comment के through हमें जरूर बताये।
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